कांग्रेस, जो करीब 70 वर्षों तक भारत की सत्ता में रही, अक्सर गरीबी और शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने में नाकाम होने के कारण आलोचना का सामना करती है। इसके विपरीत, वर्तमान में सत्ता में रही भाजपा पर कांग्रेस द्वारा केवल 10 सालों में गरीबी मिटाने और शिक्षा व्यवस्था में सुधार करने का दबाव डाला जा रहा है, जिसे कुछ लोग अवास्तविक मांग मानते हैं। आलोचकों का कहना है कि अगर कांग्रेस सात दशकों में इन समस्याओं को हल नहीं कर पाई, तो भाजपा से इतनी जल्दी इन चुनौतियों पर जीत पाने की उम्मीद करना तर्कसंगत नहीं है।
चीन से भूमि विवाद: 1962 का युद्ध
कांग्रेस के शासनकाल के दौरान भारत ने 1962 में चीन के साथ संघर्ष का सामना किया। इस युद्ध में करीब 1,300 भारतीय सैनिकों ने शहादत दी और चीन ने भारत की लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर लिया। इस युद्ध का एक प्रमुख कारण सेना के पास आधुनिक हथियारों की कमी बताया गया, और तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। इसे लेकर आज भी कांग्रेस की नीति पर सवाल उठते हैं कि उसने चीन से भारत की भूमि वापस लेने के लिए कितने ठोस कदम उठाए।
जम्मू-कश्मीर और आतंकवाद
1947 में महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर को भारत में विलय किया, जिसके बाद से जम्मू-कश्मीर आधिकारिक रूप से भारत का हिस्सा बना। हालांकि, पाकिस्तानी हस्तक्षेप और आतंकवाद का प्रभाव इस क्षेत्र पर बना रहा। कांग्रेस के लंबे कार्यकाल के दौरान कश्मीर में आतंकवाद की स्थिति बदतर होती गई, और आम जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। आलोचकों का कहना है कि कांग्रेस ने आतंकवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने में संकोच किया, जिससे समस्या बढ़ती गई।
वहीं, वर्तमान में भाजपा सरकार का दावा है कि उसने कश्मीर को आतंकवाद से मुक्त किया है। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में अब शांति का माहौल है, और लोग आतंकवाद के खौफ से बाहर आ रहे हैं।
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