हाल ही में नेपाल द्वारा 100 रुपए के नोट का रीडिजाइन कराना, जिसमें भारत के प्रशासनिक हिस्सों—लिपुलेख, लिंपियाधुरा, और कालापानी को शामिल किया गया है, एक विवाद का कारण बना है। यह नोट एक चीनी कंपनी द्वारा छापा जा रहा है, जिससे भारत-नेपाल के बीच के सीमा विवाद में चीन की भूमिका पर संदेह बढ़ गया है। इस विवादित कदम से भारत में नाराजगी की भावना दिखाई दे रही है, और यह घटना दोनों देशों के बीच के रिश्तों में एक और तनावपूर्ण पहलू जोड़ती है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भारत-नेपाल संबंध
Historical background: India-Nepal relations
1950 में नेपाली कांग्रेस ने नेपाल में राजशाही के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया, जिसके परिणामस्वरूप 1951 में नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना हुई। इस समय नेपाल के राजा त्रिभुवन और उनके पुत्र महेन्द्र ने भारतीय दूतावास में शरण ली थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत और नेपाल के संबंध ऐतिहासिक रूप से काफी मजबूत रहे हैं।
विलय की पेशकश और नेहरू का निर्णय
Offer of merger and Nehru's decision
भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी आत्मकथा द प्रेसिडेंशियल ईयर्स में लिखा है कि 1952 में राजा त्रिभुवन ने नेपाल का भारत में विलय का प्रस्ताव रखा था। हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे यह कहते हुए ठुकरा दिया कि इससे भारत को अधिक नुकसान हो सकता है। इसके विपरीत, प्रणब मुखर्जी ने सुझाव दिया है कि यदि इंदिरा गांधी नेहरू की जगह होतीं, तो वह इस अवसर को शायद छोड़ती नहींं, जैसा उन्होंने सिक्किम के मामले में किया था।
चीन के साथ नेपाल के रिश्ते
Nepal's relations with China
1955 में राजा त्रिभुवन की संदेहास्पद परिस्थितियों में मृत्यु के बाद राजा महेन्द्र ने सत्ता संभाली और चीन का समर्थन प्राप्त किया। इस समय से नेपाल ने भारत के अलावा चीन की ओर भी झुकाव दिखाना शुरू कर दिया, जिससे भारत-नेपाल संबंधों में एक नया मोड़ आया।
वर्तमान स्थिति और विवाद
Current status and controversy
इस विवादास्पद मुद्रा पर विवादित भारतीय क्षेत्रों को दिखाने से नेपाल की संप्रभुता का दावा तो जाहिर होता है, लेकिन इसके साथ ही चीन की बढ़ती भागीदारी भारत के लिए एक चिंताजनक संकेत है। चीन की इस भूमिका के साथ, सीमा विवाद और भी जटिल होता जा रहा है।
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