Bangladesh Liberation War : भारत से दुश्मनी, पाकिस्तान से दोस्ती: क्या बांग्लादेश बदल रहा है अपना रुख ?


1971 में भारत ने बांग्लादेश (तब का पूर्वी पाकिस्तान) को पाकिस्तान के दमनकारी शासन से आज़ाद कराने के लिए अपने 17,000 सैनिकों की कुर्बानी दी थी। भारत ने उस समय 1 करोड़ बांग्लादेशी शरणार्थियों को आश्रय, भोजन, और सुरक्षा प्रदान की थी। बावजूद इसके, मौजूदा समय में बांग्लादेश की बदलती राजनीतिक और कूटनीतिक स्थिति को देखकर ऐसा लग रहा है कि वह अपने पुराने मित्र भारत के साथ संबंधों में दरार डाल रहा है और पाकिस्तान के साथ दोस्ती को तरजीह दे रहा है।

1971 का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य


1971 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना ने अत्याचार और नरसंहार का तांडव मचाया था। करीब 30 लाख बांग्लादेशी मारे गए और 2 लाख से अधिक महिलाओं का दुष्कर्म हुआ। इस दमन से बचने के लिए लाखों लोग भारत में शरण लेने आए।
भारत ने इस मानवीय संकट को गंभीरता से लेते हुए मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में बांग्लादेश को आज़ादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई। इस युद्ध में भारत को न केवल सैनिकों की जान गंवानी पड़ी, बल्कि आर्थिक और सामाजिक स्तर पर भी भारी कीमत चुकानी पड़ी।

मौजूदा स्थिति: भारत और बांग्लादेश के संबंधों में खटास


हाल के वर्षों में बांग्लादेश और भारत के बीच संबंधों में तनाव के संकेत मिले हैं। कई मुद्दे, जैसे तीस्ता नदी जल बंटवारा, सीमा विवाद, और बांग्लादेश में कुछ राजनीतिक दलों द्वारा भारत-विरोधी भावना का प्रचार, इन संबंधों में दरार का कारण बन रहे हैं।


  • चीन का प्रभाव: चीन का बढ़ता आर्थिक और रणनीतिक प्रभाव बांग्लादेश की विदेश नीति पर असर डाल रहा है।
  • राजनीतिक बयानबाज़ी: कुछ कट्टरपंथी गुटों और राजनीतिक दलों ने भारत को "दुश्मन" के तौर पर प्रचारित करना शुरू कर दिया है।


पाकिस्तान से दोस्ती का बढ़ता प्रभाव


बांग्लादेश के बदलते रुख का एक और पहलू पाकिस्तान के प्रति उसका नज़रिया है।

  • व्यापार और सहयोग: बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच व्यापार और कूटनीतिक बातचीत में तेजी आई है।
  • भूलने की राजनीति: पाकिस्तान के 1971 के नरसंहार को अब बांग्लादेश के कुछ हलकों में नजरअंदाज किया जा रहा है।
  • धार्मिक समीकरण: कुछ कट्टरपंथी समूहों और राजनीतिक दलों ने पाकिस्तान को "धार्मिक भाईचारे" के नाम पर करीब लाने की कोशिश की है।


भारत की भूमिका और भविष्य की चुनौतियां


भारत ने बांग्लादेश की आज़ादी के लिए जो योगदान दिया, वह ऐतिहासिक और अमूल्य है। लेकिन बदलते राजनीतिक समीकरण और क्षेत्रीय कूटनीति के चलते भारत के सामने अब कई चुनौतियां हैं।

  • कूटनीतिक संवाद: भारत को बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को पुनः मज़बूत करने के लिए उच्च स्तरीय बातचीत की जरूरत है।
  • चीन और पाकिस्तान का प्रभाव: भारत को बांग्लादेश में चीन और पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव का संतुलन करना होगा।
  • जनसंपर्क और सहयोग: भारत को अपनी सॉफ्ट पावर का इस्तेमाल करते हुए बांग्लादेश के लोगों के साथ ऐतिहासिक संबंधों की पुनर्स्थापना करनी होगी।

क्या बांग्लादेश भूल रहा है 1971 की कुर्बानी?


भारत और बांग्लादेश का रिश्ता सिर्फ भौगोलिक नहीं, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक भी है। लेकिन मौजूदा स्थिति को देखकर ऐसा लगता है कि बांग्लादेश 1971 की घटनाओं और भारत की कुर्बानी को भूल रहा है।

यह भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए विचार करने का समय है। भारत को जहां अपनी विदेश नीति में लचीलापन और प्रभावशीलता दिखाने की जरूरत है, वहीं बांग्लादेश को अपनी ऐतिहासिक विरासत और भारत के योगदान को याद रखना होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो दक्षिण एशिया में एक मजबूत साझेदारी का सपना अधूरा रह सकता है।

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