गोराडीह (Goradih) में कोसी नदी के बाढ़ के चलते उत्पन्न हुई गंभीर स्थिति को देखते हुए, प्रसिद्ध समाजसेवी अजय कुमार उर्फ लाली दा ने अपनी चिंता और विचारों को साझा किया। लाली दा ने न केवल बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा किया, बल्कि क्षेत्र के पुरातात्विक धरोहरों को सुरक्षित रखने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
पुरातात्विक धरोहरों को बचाने की अपील
बाढ़ की मार के बीच, लाली दा ने गोराडीह के पास मौजूद पुरातात्विक स्थलों को बचाने की भी अपील की। इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल और प्राचीन धरोहरें हैं, जो बाढ़ के पानी में डूबने का खतरा झेल रही हैं। उन्होंने कहा कि इन स्थलों का न केवल ऐतिहासिक बल्कि सांस्कृतिक महत्व भी है, इसलिए इन्हें सुरक्षित रखना बेहद आवश्यक है।
लाली दा ने पुरातात्विक विभाग और संबंधित अधिकारियों से जल्द से जल्द कदम उठाने की मांग की, ताकि इन स्थलों को भविष्य के लिए संरक्षित किया जा सके। बाढ़ के कारण मिट्टी कटाव और पानी की लगातार बढ़ती मात्रा से इन स्थलों को गंभीर नुकसान हो सकता है, और यदि समय पर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह अनमोल धरोहरें हमेशा के लिए नष्ट हो सकती हैं।
बाढ़ की भयावहता पर लाली दा के विचार
लाली दा ने कहा कि हर साल गोराडीह और आस-पास के इलाकों में बाढ़ की समस्या विकराल रूप ले रही है, और इस बार भी हालात बद से बदतर हो रहे हैं। उनका मानना है कि बाढ़ की समस्या केवल प्राकृतिक नहीं है, बल्कि इसमें मानवजनित कारण भी शामिल हैं ।
उन्होंने अपने संबोधन में कहा, "हर साल कोसी की बाढ़ सैकड़ों परिवारों को बेघर कर देती है। खेतों में खड़ी फसलें बर्बाद हो जाती हैं, और लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करने पर मजबूर हो जाते हैं। यह केवल सरकार का नहीं, बल्कि पूरे समाज का दायित्व है कि वे इन समस्याओं का दीर्घकालिक समाधान निकालें।"
उन्होंने कहा कि सरकार अपने स्तर पर प्रयास कर रही है, लेकिन समाज की सहभागिता भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने बाढ़ राहत कार्यों में स्वयंसेवकों की मदद पर जोर दिया और कहा कि यह समय है जब हमें एकजुट होकर जरूरतमंदों के साथ खड़ा होना चाहिए।
अजय कुमार उर्फ लाली दा की बातें गोराडीह के बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए एक नई उम्मीद की किरण हैं। उनका संदेश साफ है – बाढ़ की समस्या का समाधान तभी संभव है जब हम सब मिलकर इसके खिलाफ खड़े हों और दीर्घकालिक योजनाओं पर ध्यान दें।
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