भारत में वक्फ़ बोर्ड की संपत्तियां विशाल और विवादों से घिरी रहती हैं। हाल ही में यूपी के संभल में एक नया मामला सामने आया है, जहां जामा मस्जिद के पास बन रही पुलिस चौकी पर AIMIM के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने बड़ा दावा किया कि यह वक्फ़ की जमीन पर बनाई जा रही है।
ओवैसी का कहना है कि रिकॉर्ड के मुताबिक यह जमीन वक्फ़ बोर्ड की है, और प्राचीन स्मारक अधिनियम के तहत मस्जिद जैसी संरक्षित संरचनाओं के पास निर्माण कार्य प्रतिबंधित है। उन्होंने इसे लेकर पीएम मोदी और सीएम योगी पर निशाना साधा और उन्हें माहौल खराब करने का ज़िम्मेदार ठहराया।
लेकिन सवाल यह है कि यदि वाकई पुलिस चौकी वक्फ़ की जमीन पर बनाई जा रही है, तो इसमें आपत्ति क्यों? आखिरकार, पुलिस चौकी पब्लिक सर्विस के लिए है, किसी निजी या राजनीतिक उद्देश्य के लिए नहीं। क्या यह वक्फ़ बोर्ड की संपत्तियों का सही उपयोग नहीं है?
वक्फ़ की संपत्ति: उपयोग और विवाद
वक्फ़ बोर्ड के पास करीब 9.4 लाख एकड़ जमीन है, जिसकी अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये है। यह जमीन, दुनिया के 45 देशों के क्षेत्रफल से भी अधिक है। लेकिन इन संपत्तियों का उपयोग प्राथमिक तौर पर मस्जिद, मदरसे, और कब्रगाह जैसे धार्मिक उद्देश्यों के लिए होता है। सवाल यह है कि क्या इन संपत्तियों का उपयोग अस्पताल, स्कूल, और अन्य पब्लिक सुविधाओं के लिए नहीं किया जा सकता?
ओवैसी का स्टेटमेंट: माहौल को भड़काने की कोशिश?
ओवैसी ने इस मामले को लेकर सोशल मीडिया पर जो बयान दिया, उसमें माहौल खराब करने की संभावना झलकती है। पुलिस चौकी का निर्माण, यदि वक्फ़ की जमीन पर हो रहा है, तो इसे विवाद बनाने की बजाय सहमति और समाधान की दिशा में बढ़ाया जा सकता था।
सरकार और वक्फ़ बोर्ड के बीच संवाद की जरूरत
वक्फ़ बोर्ड की संपत्तियों को सार्वजनिक हित के लिए इस्तेमाल करने का मार्ग प्रशस्त करने की जरूरत है। विवाद बढ़ाने की बजाय, सरकार और वक्फ़ बोर्ड को मिलकर समाधान निकालना चाहिए ताकि ऐसी संपत्तियों का उपयोग समाज के व्यापक हित के लिए किया जा सके।
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