दिवाली पर विवाद: विशाल मेगा मार्ट का विज्ञापन बना विरोध का कारण Boycott Dainik Bhaskar


दिवाली के दौरान भारत के प्रसिद्ध मॉल विशाल मेगा मार्ट ने दैनिक भास्कर में एक विज्ञापन प्रकाशित किया, जिसमें दिवाली के लिए खास ऑफर्स दिए गए थे। हालांकि, इस विज्ञापन में एक लाइन, "डील्स के धमाके, प्लीज नो फ़टाके," छपी थी, जिसने हिंदू समाज के कुछ वर्गों में गहरी नाराजगी पैदा कर दी। इस वाक्य को हिंदू समुदाय ने दिवाली पर्व की परंपराओं का अनादर मानते हुए इसके खिलाफ कड़ा विरोध जताया।

विवाद की शुरुआत कैसे हुई?

How did the controversy start?

दिवाली हिंदू धर्म का प्रमुख पर्व है, जिसे दीपकों से सजी रोशनी, पूजा-अर्चना, और फटाके जलाने के साथ मनाया जाता है। हिंदू समाज के लिए फटाके और आतिशबाजी इस पर्व का एक अभिन्न हिस्सा हैं, जो खुशी और उल्लास का प्रतीक हैं। ऐसे में "प्लीज नो फटाके" जैसे शब्दों को जोड़कर विज्ञापन छापना कई लोगों को संस्कृति और परंपराओं पर प्रहार की तरह महसूस हुआ। इस विवाद के बाद हिंदू समुदाय के लोगों ने सोशल मीडिया पर इस विज्ञापन के खिलाफ नाराजगी जाहिर करते हुए #BoycottDainikBhaskar हैशटैग के तहत दैनिक भास्कर और विशाल मेगा मार्ट का बहिष्कार करने की मांग की।

विशाल मेगा मार्ट ने मांगी माफी

Vishal Mega Mart apologized

विवाद को बढ़ता देख, विशाल मेगा मार्ट ने इस विज्ञापन पर सफाई देते हुए सार्वजनिक माफी मांगी। उन्होंने स्वीकार किया कि यह वाक्य गलती से प्रिंट हुआ था और किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना उनका उद्देश्य नहीं था। इस स्पष्टीकरण के बावजूद सोशल मीडिया पर #BoycottDainikBhaskar ट्रेंड करता रहा, जहां करीब 50 हजार से अधिक पोस्ट्स इस हैशटैग के तहत किए गए।

सोशल मीडिया पर बढ़ता विरोध

Growing opposition on social media

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर यह ट्रेंड तेजी से वायरल हो गया और लोगों ने दैनिक भास्कर के साथ-साथ विशाल मेगा मार्ट के खिलाफ भी अपने विचार साझा किए। कई लोगों ने इस घटना को भारतीय संस्कृति और परंपराओं पर हमला माना। इसके चलते, विरोध के स्वर और तीखे होते जा रहे हैं, और लोग इस मुद्दे को लेकर व्यापक स्तर पर बहस कर रहे हैं।

निष्कर्ष

यह मामला दर्शाता है कि त्योहारों के दौरान विज्ञापनों में संवेदनशीलता का ध्यान रखना कितना महत्वपूर्ण है। धार्मिक भावनाओं को आहत न करते हुए ऐसे विज्ञापन तैयार करना ब्रांड्स के लिए एक चुनौती बनता जा रहा है। इस प्रकार के विवादों से यह स्पष्ट होता है कि सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं का सम्मान करते हुए ही प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए, ताकि किसी भी समुदाय की भावनाएं आहत न हों।

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